Sunday, July 6, 2008
क्या हम अंधे हैं या फिर बेवकुफ
क्या हम सब पडोसीयों के बहकावे में हमेशा ही अपनों को खोते रहेंगे... पाकिस्तानी जेलों में अबतक कई ऐसे बेकसूर बंद है जिनका हमारे पास कोई लेखा जोखा नही... 1947 से वो हमारे साथ जंग छेडे हुए है और जबभी हम अपनी आवाज बुलंद करने की कोशीश करते है तो वो दोस्ती का ढोंग करते हैं और पहले मौका मिलते ही आस्तीन में छीपे सांप की तरह हमें डसते है... और बेचारे बदनाम होतें हैं इस देश के मुस्लमान जिनको इनसे कोई मतलब नही है... बम धमाकों में कई मुस्लमान भी मारे गए इन पाकिस्तानीयों के चक्कर में... हम सब को मिलकर कुछ करना होगा इस्से पहले की हम अपने आपको पुरी करह से खो दें...
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