Saturday, July 5, 2008

'शैतानी' गतिविधियों का केन्द्र बनती यह 'लाल मस्जिदें'


इस्लाम धर्म में मस्जिद नामक धर्मस्थल को आराधना के सबसे बड़े केन्द्र के रूप में मान्यता प्राप्त है। मस्जिद का शाब्दिक अर्थ होता है वह स्थान जहाँ अल्लाह को सजदा किया जाए। चूंकि इस्लाम धर्म में अल्लाह या निराकार ईश्वर के अतिरिक्त किसी के समक्ष सजदा करने की इजाजत नहीं है इसलिए मस्जिद को बैतुल्लाह के नाम से भी जाना जाता है। बैतुल्लाह अर्थात् खुदा का घर। परन्तु पिछले दिनों पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में जो घटनाक्रम देखने को मिला उसे देखकर यह संदेह पैदा होने लगा है कि वास्तव में कट्टरपंथी सोच रखने वाले मुसलमानों ने कहीं मस्जिद जैसे पवित्र आराधना स्थल को भी 'बैत-उल-अल्लाह' के बजाए 'बैत-उल-शैतान' यानी शैतान का घर तो बनाकर नहीं रख दिया? इस्लामाबाद के अत्यन्त सभ्रान्त इलाके में स्थित इस अति विवादित एवं संदेहपूर्ण लाल मस्जिद के विषय में बताया जाता है कि इसका निर्माण सरकारी ज़मीनों पर अवैध कब्जा कर किया गया था। पाकिस्तान के उच्च श्रेणी के नेताओं, उच्चाधिकारियों तथा पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई के शीर्ष अधिकारियों के आवागमन का भी यह मस्जिद एक प्रमुख केन्द्र रही है। आश्चर्य की बात है कि आई एस आई का मुख्यालय भी लाल मस्जिद के बिल्कुल निकट ही स्थित है। इस मस्जिद के प्रमुख मौलवी अब्दुल अजीज तथा मौलवी अब्दुल रशीद पाकिस्तान के दक्षिण प्रांत के रहने वाले थे। इन भाइयों से पहले इनके पिता मौलाना अब्दुल्लाह इसी मस्जिद के प्रमुख मौलवी थे। कुछ वर्ष पूर्व मौलाना अब्दुल्लाह की भी इसी लाल मस्जिद परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने वाली इस मस्जिद में लड़कों व लड़कियों के अलग-अलग मदरसे तथा उनके छात्रावास भी स्थित थे। इस मस्जिद के प्रमुख मौलाना अब्दुल अंजींज तथा मौलवी अब्दुल रशीद गाजी गत् कई वर्षों से पाकिस्तान में इस्लामी शरिआ कानून लागू किए जाने की मांग कर रहे थे। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान में इस्लामी शरिआ कानून लागू किए जाने की माँग के पीछे तालिबानी विचारधारा रखने वाले संगठनों तथा अन्य कई कट्टरपंथी संगठनों के साथ-साथ अलंकायदा, जैश-ए-मोहम्मद तथा लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों की भी अहम भूमिका थी।

अमेरिका में 11 सितम्बर को हुए आतंकवादी हमले के बाद लाल मस्जिद इस्लामी गतिविधियों के बजाए आतंकवादी गतिविधियों का एक प्रमुख केन्द्र बनता जा रहा था। यहाँ पाकिस्तान के कई कट्टरपंथी संगठन न सिर्फ अमेरिका विरोधी रणनीतियाँ तैयार करते थे बल्कि पाकिस्तानी अवाम को इस्लाम के नाम पर एकजुट करने तथा पूरे पाकिस्तान को तालिबानी विचारधारा की राह पर ले जाने के लिए भी प्रयासरत थे। पाकिस्तान में शरिआ कानून लागू किए जाने की माँग उसी सिलसिले की एक कड़ी थी। पिछले कुछ समय से इस तथाकथित मस्जिद की हालत ऐसी हो गई थी कि गोया यह अल्लाह की इबादत अथवा इस्लामी शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि आतंकवादियों की शरण स्थली बन गई थी। इस मदरसे के तमाम छात्र पिस्तौल, राईंफलों तथा प्रतिबंधित ए के 56 व ए के 47 जैसे शस्त्रों से लैस तथा अपने मुँह पर मास्क लगाए पूर्णतय: संदिग्ध अवस्था में घूमते फिरते दिखाई देने लगे थे। छात्रों के भेष में रहने वाले आतंकवादियों ने अपनी आतंकपूर्ण गतिविधियों को पाकिस्तान की सड़कों पर भी उतार दिया था। यह संदिग्ध लोग कारों के कांफिलों के साथ इस्लामाबाद की सड़कों पर सशस्त्र घूमते व दहशत फैलाते थे तथा जब जिसका चाहते अपहरण भी कर लिया करते थे। कुल मिलाकर इन दहशतगर्द तथाकथित इस्लामी झंडाबरदारों ने पाकिस्तान की मुशर्रफ सरकार के समक्ष कड़ी चुनौती पेश करनी शुरु कर दी थी। यहाँ तक कि मस्जिद की ओर से पाकिस्तान में आत्मघाती हमले कराए जाने की बातें भी की जाने लगी थीं। मस्जिद के प्रमुख दोनों भाई पाक प्रशासन को आए दिन यह चेतावनी देते रहते थे कि उनके पास आत्मघाती दस्ते हैं तथा वे जरूरत पड़ने पर कहीं भी आत्मघाती हमले कर सकते हैं।

बहरहाल जब लाल मस्जिद की आतंकपूर्ण गतिविधियों का पैमाना लबरेंज हो गया तो अन्ततोगत्वा मुशर्रंफ सरकार को लाल मस्जिद में छात्रों के भेष में छिपे बैठे आतंकवादियों के विरुद्ध सशस्त्र कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा। निश्चित रूप से इस दु:खद घटनाक्रम में सैकड़ों लोग मारे गए। परन्तु इस कार्रवाई का सबसे रोचक पहलू यह रहा कि इस्लाम के नाम पर मासूम व बेगुनाह लोगों को आत्मघाती हमलों हेतु मानव बम के रूप में 'शहीद' होने की प्रेरणा देने वाला मस्जिद का प्रमुख मौलवी अब्दुल अजीज पाकिस्तानी रेंजर्स की कार्रवाई का सामना करने के बजाए अपने सहयोगियों व मदरसे के छात्रों को मस्जिद में ही छोड़कर महिलाओं के झुण्ड में महिला के भेष में बुर्का (नकाब) ओढ़कर छुपकर भागता हुआ गिरफ्तार किया गया जबकि उसका दूसरा भाई अब्दुल रशीद गाजी मस्जिद से निकल भागने का सुरक्षित रास्ता न मिल पाने के कारण सैन्य कार्रवाई में मारा गया। इस समूचे घटनाक्रम में तथा लाल मस्जिद से जुड़ी पिछले एक दशक की गतिविधियों में जो कुछ देखने को मिल रहा है उससे इस्लामी शिक्षा का आंखिर क्या वास्ता हो सकता है?

क्या इस्लामी तालीम यही सिखाती है कि सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जा कर मस्जिद का निर्माण किया जाए? अल्लाह के घर तथा मस्जिद को हथियारों के भण्डारण का केंद्र बना दिया जाए? बेगुनाह लोगों की हत्याएं करने वाले पेशेवर आतंकवादियों की शरण स्थली के रूप में मस्जिद या मदरसे का इस्तेमाल किया जाए? मदरसे के तथाकथित छात्रों द्वारा निहत्थे व बेकुसूर लोगों का अपहरण किया जाए? मस्जिद परिसर में बैठकर अल्लाह को सजदा करने, उसकी इबादत करने के बजाए इस पवित्र आराधना स्थल का प्रयोग सियासत करने, साजिश रचने तथा विद्रोही रणनीतियाँ तैयार करने हेतु किया जाए? और यदि यह मान भी लिया जाए कि यह सब कुछ तथाकथित मौलवी बन्धुओं द्वारा केवल इसलिए किया जा रहा था कि वे पाकिस्तान में इस्लामी शरीआ कानून लागू कराना चाहते थे तो क्या अपनी माँग मनवाने का उनके पास यही एक तरीका बाकी रह गया था? और लाल मस्जिद आखिर पाकिस्तान में कौन से इस्लामी शरीआ कानून को लागू करने की बात कर रही थी? क्या तालिबानी नीतियाँ ही वास्तविक इस्लामी शरिआ कानून हैं? क्या कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा को ही इस्लामी शरीआ कहा जाना चाहिए?

पाकिस्तान की लाल मस्जिद में हुए 'आप्रेशन साइलेंस' ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि इस्लाम के नाम पर होने वाली कट्टरपंथी व आतंकवादी गतिविधियां तथा इसे संचालित करने वाले लोग दरअसल स्वयं न सिंर्फ इस्लाम विरोधी हैं बल्कि यह अल्लाह, इन्सानियत व दुनिया के शांतिप्रिय उदारवादी मुसलमानों के भी सबसे बड़े दुश्मन हैं। यदि ऐसा न होता तो न तो अलंकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन जैसे इस्लामी ठेकेदार गुफाओं में छुपते फिर रहे होते न ही अब्दुल अजीज को बुर्का ओढ़कर मुँह छिपा कर भागने के लिए औरतों के झुण्ड का सहारा लेना पड़ता। दरअसल आज इस्लाम पर तो स्वयं यंजीदी शक्तियाँ ही नियंत्रण हासिल करना चाह रही हैं जिन्हें लुक छुपकर रहने व मासूमों व बेगुनाहों पर छुपकर वार करने में अधिक विश्वास रहता है। जनरल मुशर्रंफ में लाख कमियाँ सही तथा ऑप्रेशन साइलेंस के भले ही तमाम अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ क्यों न लगाए जा रहे हों परन्तु मुशर्रफ ने लाल मस्जिद पर देर से ही क्यों न सही परन्तु यहाँ से आतंकवादियों की सफाई कर निश्चित रूप से एक अत्यन्त सराहनीय कार्य किया है। जरूरत इस बात की है कि सिर्फ इस्लामाबाद की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कहीं भी 'लाल मस्जिद' रूपी आराधना स्थल आतंकवादी गतिविधियों के केन्द्र के रूप में संचालित किए जा रहे हों, उन सभी नेटवर्क को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए। इन स्वयंभू इस्लामी झण्डाबरदारों को क्षमा भी नहीं करना चाहिए क्योंकि आज इस्लाम को आतंकवाद के पर्याय के रूप में देखे जाने में इन्हीं कट्टरपंथी रूढ़िवादियों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है लिहाजा इन्हें इनके कारनामों की सजा जरूर दी जानी चाहिए।

No comments: