Saturday, August 30, 2008

मौत या बेमौत

सरकार की व्यवस्था कैसी है आप खुद ही देख सकते हैं और अंदाजा लगा सकते है... क्या सरकारी तंत्र इस बार बिहार में इतना ज्यादा बेखबर हो गया था उसे इस खतरे का अंदेशा तक नही हुआ...

Saturday, August 23, 2008

जीयो और जीने दो

{मुझे नही पता इस लेख को पढने के बाद आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी मगर मेरे उपर इसका इतना गहरा असर पडा है । आज कोई भी मेरा नाम पुछता है तो मुझे अपना नाम बताने तक में संकोच होता है }

अचानक ही बात निकल पडी... दोस्तों ने धर्मनिर्पेक्षता पर बात छेड दी थी। मैं चुपचाप सुनता रहा , उनका कहना था अलगाव की राजनीत से ही लोग प्रभावीत होते आए हैं जिसकी वजह एक वर्ग ऐसा है जो हर चीजों को धर्म के नाम पर ही तैलता हैं मैने बहुत ज्यादा कुछ नही कहा सिर्फ सुनता रहा। मैं खुद भुक्तभोगी रह चुका हुं खैर बात बीच मे ही रुक गई और हम सब अपने अपने दफतर लौट आए। शाम की बुलेटीन के लिए तैयारी करनी थी मगर दिन को हुई बाते मेरे दिमाग में बार बार कौंध रही थी और उन दिनों की बातें याद आ गई जब मेरा तबादला पटना से दिल्ली कर दिया गया था । मकान की समस्या काफी अहम थी इसिलिए दिल्ली पहुंचते ही मैने मकान खोजना शुरु कर दिया... मकान मालीक भी मकान बडे प्यार से दिखाते मगर मेरे बारे में जानकारी मिलने के बाद उनका स्वाद ही बिगड जाता था । मैं पत्रकार आदमी इस बात को शुरु में पकड नही पाया की मामला क्या है । मैने अपने एजेंट से इस बारे में जब पुछताछ की तो पता चला की मेरा मुसलमान परिवार में जन्म लेना इन लोगों को नागवार गुजर गया है , मेरे भारतीय होने से इन्हे कोई फर्क नही पडता । खैर, मेरे एक मित्र विक्रम को जब मेरे इस हालत के बारे में पता चला तो उसने अपना नया एक कमरे का मकान मुझे किराए पर दे डाला । मैंने उसका शुक्रिया अदा किया और सामान लेकर उसके मकान में पहुंच गया । गर्मी के दिन थे और उपरी मंजील का मकान , अब मकान चुंकी नया था इसिलिए बिजली का कनेक्शन भी नही आया था आप ही सेचीए मेरी क्या हालत हुई होगी। खैर मैं उस मकान में रहने लगा मगर सोता ऑफिस में ही था क्योंकि दिल्ली की गर्मी तो आपको पता ही है । बिस्तर पर पानी छीडक कर सोने की कोशीश करता था मगर गर्मी के कारण सुबह तक आंखे खुली ही रहती थी । देर शाम तक की शिफ्ट भी मैं करने लगा । मेरी हालत खराब होती जा रही थी मगर कोई भी मकान देने को तैयार नही हुआ । दिन प्रतिदिन मेरी सोंच मझे धोखा दे रही थी । पहले मैं ये सोचता था कम से कम इस देश में तो लोग एक दुसरे से इतनी घृणा नही करते होंगे पर यहां आकर पता चला की आप चाहे कितने बडे देश प्रेमी क्यों न हों मगर जब बात धर्म की आती है तो कोई किसी का नही ।
मेरे दोस्त जो मुझे मकान दिलाने में मेरी मदद कर रहे थे उन्हे भी शर्म आने लगी थी मगर वो भी बेचारे लाचार थे । बाद में आखीरकार मुझे एक बैंक अधिकारी जो अपने आपको मेरे ही धर्म का होने का दावा करता था उसने नोएडा में अपना मकान दिया।
मेरे साथ ऐसा हुआ क्यों , इसका सबसे बडा कारण है इस देश में चल रही राजनिती। शुरु से ही हम देखते आ रहे 1947 के बाद से ही अलगाव की राजनीत शुरु हो गई थी । हमसब भारतीय तो हैं मगर धर्म और जात के नाम पर बटे हुए हैं और वोट भी हम उसी आधार पर देते आए हैं । अब देखिए मुस्लमानों में भी जाती के नाम पर राजनीत शुरु हो चुकी है । अपना उल्लु सिधा करने के लिए पसमंदा मुस्लिम महाज के नाम पर कुछ मुस्लिम नेता राजनीत कर रहे हैं यानी सिधे तौर पर लडवाने की राजनीत ।
अयोधया के मामले में भी हमने देखा की क्या हुआ । बाबरी मस्जिद में बाबर के मरने के बाद किसी ने शायद ही किसी ने नमाज पढा होगा मगर कुछ नेताओं के चक्कर में कितने मासुम मारे गए । धमाके जब होते हैं तो सिर्फ इंसान मरते हैं, खुद सोंच कर देखिए की कैसे कैसे लोग मारे गए । देश का कोई भी हिस्सा हो, इस बीमारी से अछुता नही है ।
सीमी जैसे संगठन के बारे कौन नही जानता मगर सरकार में दो वरीष्ठ मंत्री ये मानते है की इस संगठन का आतंकवाद से कोई लेना देना ही नही है । अफजल गुरु का हश्र क्या होना चाहिए था ये तो कोई बच्चा भी बता देगा मगर हम उसे भी पाल रहे हैं । आप मरते रहिए मगर सरकार पडोसीयों के दुशमनी के जवाब में सिर्फ कसीदे ही पढेती रहेगी । और इन सब के चक्कर में लोगों के गुस्से का शिकार होना पडता है हम जैसे लोगों को जिसके लिए देश से बडा कुछ भी नही शायद धर्म भी नही।

Saturday, August 2, 2008

सूषमा मैडम की राजनीत....

खैर चलिए छोडिए, उमा भारती को... उनकी नाराजगी जायज भी है आखीर सबने उन्हे छोड दिया है ... समझा किजिए भाई लेकिन भाई ये सुषमा स्वराज को क्या हो गया है... जनता हैरान... नेता हैरान और एनडीए परेशान... उन्हे भी मुंह की खानी पडी... मेरे पिता अक्सर कहा करते हैं की देखने में दिमाग से तेज लगना और वाकई में तेज होना दो अलग बाते हैं... अगर वो चुप ही रहती तो लोग उन्हे तेज नेताओं की गिनती में ही रखते मुंह जो खोला सारे पोल खुल गए... ना ना ये मैं नहीं कह रहा हुं ये तो खुद उनकी एनडीए कह रही है भाई... मिडिया को क्या लेना देना हम तो वही दिखाते हैं जो होता है... नारायण नारायण....सूषमा जी एक काम किजिए कुछ दिनों के लिए किसी से टयूशन ले लिजिए शायद सोनीया गांधी ठीक रहेंगी आपको पढाने के लिए... या फिर अमर सिंह भी तो बुरे नहीं हैं... अरे आपतो नाराज हो गई मैडम मैं तो बस एक नागरीक के तौर पर आपको सुझाव दे रहा था आप तो नाराज हो गईं... खैर आपकी मर्जी... अरे हां एक बात तो बताना भुल ही गया शायद आपका नाम कानपुर सीट के लिए तय कर दिया गया है और अब श्री प्रकाश जयसवाल आपके खिलाफ चुनाव लडने में शर्म महसुस कर रहे हैं... खैर आप लोग आपस में समझ लिजिएगा... हम वहीं कहीं कोने में अपने कैमरे लेकर मौजुद रहेंगे...

लालच बुरी बला...


1 अगस्त को इस देश ने उमा भारती की करतुत भी देखी... सबकुछ टीवी पर था.. एक सीडी जिसमें एक व्यक्ति बीजेपी सांसदों के घरों में एक भारी बैग लेकर जा रहा है... बाद में ये दावा किया गया की बीजेपी ने 22 जुलाई को संसद में नोटों को लहराने की झुटी साजीश रची थी... हमे भी लगा की ये क्या हो गया... लेकिन बाद में जब उस सीडी पर गौर किया गया तो सवाल उठाने वाली उमा भारती खुद शक के घेरे में आ गई... वो सीडी दरअसल कांड होने के बाद में फिल्माया गया था क्योंकि संसद में जब नोटों को लहराया गया उसके बाद अशोक अर्गल के घर के बाहर बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने 23 जुलाई को एक होर्डिंग लगवाई थी जिसमें इस कांड को उजागर करने की बधाई दी गई थी... यहीं पर आकर उमा भारती की फिल्म मार खा गई और जनता में पहुंचने से पहले बॉक्स ऑफिस में ही पिट गई... उसके बाद बीजेपी को मौका मिल गया उमा को लथाडने का जमकर लथाडा लेकिन फिर बाद में शायद दया दिखाते हुए छोड दिया... वो भी समझते उनकी छटपटाहट को... कॉंग्रेस की तरह सत्ता की भुख से वो भी वाकीफ हैं... बहरहाल, जनता भी बहुत मजा ले रही है किसी भी एन्टरटेनमेंट प्रोग्राम से कम थोडे ही है आजकल जो भी हो रहा है सत्ता के गलियारे में .... मजा लिजिए ऐश किजिए...