मैं बहुत ज्यादा तु तु मैं मैं के चक्कर में पडना नही चाहता ... एक तो हम महाराष्ट्र में पिटे फिर घर लौटकर अपने ही घर को तबाह कर दिया... रह गए जाहील के जाहील... गुस्सा कहीं दिखाना चाहिए था दिखा कहीं रहे हैं... खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे... पिटे मुंबई में और पिट रहे हैं बिहारीयों को... क्या तमाशा है... बिहार अपने ही लोगों के बेवकुफीयों की वजह से बदनाम है ... सब थू थू कर रहे हैं हमपर... राज ठाकरे का जो होना है वो तो अलग बात है पर जिस तरह से हम आवाज उठा रहे हैं वो क्या सही है ... और हमारे इसी करतुतों की वजह से कई बिहारी नेताओं को मौका भी मिल गया सियासत करने का... कोई ट्रेन के इंजन को लेकर भाग रहा है तो कोई ट्रेन की बौगी में ही आग लगा रहा है परेशानी किसे हो रही है आम जनता को वो जनता कई अरसे बाद अपने परिवार के साथ पर्व मनाना चाह रही है ... कौन जिम्मेवार है इसके लिए ... क्या नेता जी नही हम खुद अपनी बर्बादी के लिए जिम्मेदार हैं और बाद में रोते फिरेंगे अपनी हालत पर । जैसी है ठीक है ऐसे जाहीलों की हातल कौन सुधार सकता है कोई नही ...
मेरी बात तो बहुतों को बुरी लगेगी मगर क्या जो मैं कह रहा हुं वो गलत है ... बुरा लगे तो लगे पर हम खुद ही हर जगह से गाली सुनने का काम करते हैं ... लडाई लडने का जो तरीका है वो बिलकुल गलत है ...
ठीक ही सब हमें बिहारी या नाली के किडे कहते हैं... और ये नेता हैं पहले तो बडी बडी बातें कर रहे थे जी आपने ठीक समझा मैं लालू प्रसाद यादव के बारे में ही कह रहा हुं... पहले तो डिंगे हांक रहे थे की छठ मुंबई में मनाएंगे पर जब बारी आई तो डर के मारे बील में छुप गए कहां थे वो जब हम पिट रहे थे... किया तो कुछ भी नही मगर वोट लेने के वक्त पहुंच जाएंगे वोट मांगने... सब बडे नेता बनते हैं चाहे वो लालू हों या नितीश मगर समय पर सब के सब गायब।
मैं विनती करता हुं बिहारीयों जरा सोचों तुम क्या कर रहे हो... किसे तकलीफ पहुंचाया है तुमने खुद अपने ही लोगों को पवन की मौत का बदला गलत लोगों से ले बैठे यार ...
Friday, October 24, 2008
Saturday, October 18, 2008
डंके की चोट पर
आतंकवाद का नंगा नाच था या फिर कुछ और बात कुछ समझ में नही आई... आपको आई क्या... जामिया नगर में कई नेताओं का जुटान होता है ... भाषण भी होता है ... बडी बडी बातें की जाती है ... ऐसा लग रहा था सब के सब अचानक मुसलमानों के रहनुमा बन गए हैं... मुसलमानों की हालत को देखकर इनकी आंखें नम होने लगती हैं और आवाजें थरथराने लगती हैं... इससे पहले भी लगता है इन्होने मुसलमानों की खुब मदद करने की कोशीश की शायद इसिलिए आज एक भी मुसलमान इस देश में भुखा नही सोता है सबके बच्चे पढ लिखकर कहां से कहां पहुंच चुके हैं ... अरे रे चुनाव आने वाला है क्या ... अच्छा तो ये सब उसके लिए है ...
बताईये, वोट लेने की होड में शहीदों को भी नही बख्शा जा रहा है... अच्छा है शायद अब अमर सिंह की कुछ साख तो बनेगी। अर्रे भाई इससे क्या फर्क पडता है की उनकी मदद कौन कर रहा है मुसलमान या फिर... देखिए भाई मैने देखा है और जानता भी हुं कई राज्यों में तो नक्सलियों के बगैर मदद के सरकारें भी नही बनती... अब समाजवादी पार्टी एक नया ट्रेंड शुरु करने जा रही है मुसलमानों का वोट आतंकीयों के जरिए हासील करेगी... क्या फर्क पडता ।
बटला हाउस में शुक्रवार को जो हुआ वो क्या था... ये सिर्फ रैली थी क्या, जी नही... बिलकुल भी नही, ये तो ड्रामा था... इस ड्रामें की पटकथा अमर सिंह जैसे लोग लिख रहे हैं... इन्हे मिर्ची क्यों लग रही है... कहां थे ये लोग अबतक 1947 से लेकर अबतक इनही के जैसे लोगों नें कई बेगुनाहों को हिन्दु मुसलमान के नाम पर कटवाया है ... और बटला हाउस एनकाउंटर के बाद चुनावी मुद्दा इससे बढिया हो ही नही सकता था... अबतक हमलोग सिर्फ ये मानते थे की सरहद पार से ही इन आतंकीयों को मदद मिलती रही है मगर अब ये लगता है यहां के लडकों क वहां तक जाने की जरुरत ही नही है... इसी देश के लोग और इन्ही जैसे लोग इनके हाथों में AK-47 पकडवा रहे हैं... या फिर दुसरी बात ये हो सकती है की कहीं ये नेता का चोगा पहने हुए लोग पाकिस्तानी या बंगलादेशी एजेंट तो नही हैं... सरकार भी अंधी और बहरी ही है ऐसा भडकाउ भाषण देते हैं ये लोग लेकिन वोट बैंक की खातीर वो भी चुप ही रहती है।
मैं भी मुसलमान हुं... मगर मुझे अपने आपको मुसलमान साबीत करने के लिए ऐसे किसी भी दोगले शख्स की जरुरत नही जो मुझे मेरे ही भाईयों के खिलाफ भडकाए... बटला हाउस में एंकाउर होता है तो पहुंच जाते हैं घडियाली आंसू बहाने के लिए मगर उसी बटला हाउस और उसके आसपास के मुसलमान इलाके की स्थिती क्या है इन्हे दिखता ही नही है... दाढी बढाए हुए नकली मुल्लों की फौज तैयार करके लडकों को भडकाया जा रहा है ये किसी की नजर में क्यों नही आता... देश में कोई और मुद्दा नही है क्या... देश के कितने बच्चे ऐसे हैं जो भुखे सोते हैं ... देश में स्कूल नही जा पाते हैं ये बच्चे मगर इनकी गरीबी नही दीखती है इनसे मगर एक कोई कीसी शक पर गिरफतार हो जाए तो फिर देखिए सब के सब पहुंच जाते हैं झुंड बना कर और शायद ये कहते हुए की , चल चल वोट बट रहा है ... और इनहे आजकल बटला हाउस में हड्डी दिख रही है ... पुंछ हिलाए जा रहे हैं...
मैं हमेशा वनदे मातरम कहता हुं कहता रहुंगा ,,, जिससे जो बन पडे कर लेना .... जाओ
बताईये, वोट लेने की होड में शहीदों को भी नही बख्शा जा रहा है... अच्छा है शायद अब अमर सिंह की कुछ साख तो बनेगी। अर्रे भाई इससे क्या फर्क पडता है की उनकी मदद कौन कर रहा है मुसलमान या फिर... देखिए भाई मैने देखा है और जानता भी हुं कई राज्यों में तो नक्सलियों के बगैर मदद के सरकारें भी नही बनती... अब समाजवादी पार्टी एक नया ट्रेंड शुरु करने जा रही है मुसलमानों का वोट आतंकीयों के जरिए हासील करेगी... क्या फर्क पडता ।
बटला हाउस में शुक्रवार को जो हुआ वो क्या था... ये सिर्फ रैली थी क्या, जी नही... बिलकुल भी नही, ये तो ड्रामा था... इस ड्रामें की पटकथा अमर सिंह जैसे लोग लिख रहे हैं... इन्हे मिर्ची क्यों लग रही है... कहां थे ये लोग अबतक 1947 से लेकर अबतक इनही के जैसे लोगों नें कई बेगुनाहों को हिन्दु मुसलमान के नाम पर कटवाया है ... और बटला हाउस एनकाउंटर के बाद चुनावी मुद्दा इससे बढिया हो ही नही सकता था... अबतक हमलोग सिर्फ ये मानते थे की सरहद पार से ही इन आतंकीयों को मदद मिलती रही है मगर अब ये लगता है यहां के लडकों क वहां तक जाने की जरुरत ही नही है... इसी देश के लोग और इन्ही जैसे लोग इनके हाथों में AK-47 पकडवा रहे हैं... या फिर दुसरी बात ये हो सकती है की कहीं ये नेता का चोगा पहने हुए लोग पाकिस्तानी या बंगलादेशी एजेंट तो नही हैं... सरकार भी अंधी और बहरी ही है ऐसा भडकाउ भाषण देते हैं ये लोग लेकिन वोट बैंक की खातीर वो भी चुप ही रहती है।
मैं भी मुसलमान हुं... मगर मुझे अपने आपको मुसलमान साबीत करने के लिए ऐसे किसी भी दोगले शख्स की जरुरत नही जो मुझे मेरे ही भाईयों के खिलाफ भडकाए... बटला हाउस में एंकाउर होता है तो पहुंच जाते हैं घडियाली आंसू बहाने के लिए मगर उसी बटला हाउस और उसके आसपास के मुसलमान इलाके की स्थिती क्या है इन्हे दिखता ही नही है... दाढी बढाए हुए नकली मुल्लों की फौज तैयार करके लडकों को भडकाया जा रहा है ये किसी की नजर में क्यों नही आता... देश में कोई और मुद्दा नही है क्या... देश के कितने बच्चे ऐसे हैं जो भुखे सोते हैं ... देश में स्कूल नही जा पाते हैं ये बच्चे मगर इनकी गरीबी नही दीखती है इनसे मगर एक कोई कीसी शक पर गिरफतार हो जाए तो फिर देखिए सब के सब पहुंच जाते हैं झुंड बना कर और शायद ये कहते हुए की , चल चल वोट बट रहा है ... और इनहे आजकल बटला हाउस में हड्डी दिख रही है ... पुंछ हिलाए जा रहे हैं...
मैं हमेशा वनदे मातरम कहता हुं कहता रहुंगा ,,, जिससे जो बन पडे कर लेना .... जाओ
Wednesday, September 24, 2008
घर बचाओ भाई... सियासत मत करो
बात चाहे जो हो हमारी देश की एजेंसीयां जांच कर रही हैं... मगर जामीया मिलीया यूनिवर्सिटी के कुलपति ऐसा नही चाहते हैं... किसे बचाने की कोशीश कर रहे हैं वो क्यो वो ये चाहते हैं इस देश की जमीन पडोसी मुल्क के इशारे पर लाल होती रहे... हम जैसे लोग मरते रहें... मैं ये नही कहता की सारे गलत हैं मगर जामिया नगर का उस इलाके में ऐसे मंसूबे पालने वाले और लडकों को भडकाने वालों की कमी नही है... मुस्लमान लडके वहां कमरा लेकर पढते हैं कमरा सस्ता मिल जाता है खाने पिने का सामान सस्ता मिलता है शायद यही वजह है देश के कोने कोने से आने वाले छात्र इस तरह के इलाकों को चुनते हैं मगर ऐसे लडकों की तालाश में आखें फाडे इन आतेकीयो के दलाल ऐसे लडको के सामने चारा फेंकते हैं और फंसा लेते हैं...
अब आज ही की बात ले लिजिए हमारे एक सहयोगी जामिया गए थे कुलपति का इंटरवियू करने मगर उन्हे मां बहन की गाली सूनकर वापस लौटना पडा... और गांलीयां देने वाले यबनिवर्सिटी के छात्र ही थे.. सिर्फ यही नही ... एन्काउंटर वाले दिन भी पत्रकारों के साथ जो हुआ वो ठीक नही था... उधर गोलियां चल रही थी और इधर पत्रकार गालीया सुन रहे थे... एक पुलिस वाला मारा गया मगर एक भी ऐसा शख्स नही था जिन्होने दिल्ली में होने वोले आतकी हमले के खिलाफ कुछ बोला हो... बल्कि आज क्या हो रहा है पुलिस पर ही लोग आरोप लगा रहे हैं... छी छी ... ये कैसे लोग हैं ये कौन लोग हैं जो इस देश की मिट्टी में जन्म लेने के बाद भी पडोसी मुल्क का ही गुनगान करते हैं...
सरकार भी सोई हुई है... सबकुछ जानते हुए भी चुपचाप तमाशा देख रही है... कोई पॉलिसी ही नही है... अमरीका जिससे हाथ मिलाने को सरकार बेचैन है उससे ही सबक सिखे... वर्लड ट्रेड सेन्टर पर हमले के बाद अमरिका ने रातो रात अफगानिस्तान पर हमला कर दिया मगर हम पता नही क्यों चुप हैं... इस देश में एक आंदोलन की सख्त जरुरत है और इसकी शुरुआत जल्द ही शुरु करनी चाहीए... क्योंकि लडाई अगर अब नही शुरु हुआ तो फीर कभी नही शुरु हो पाएगा... और इसमें हम सबको चाहे वो हिंदु हो , मुस्लमान हो कोई भी हो साथ में हाथ मिलाकर आगे बढे... अपने घर को बचाएं
अब आज ही की बात ले लिजिए हमारे एक सहयोगी जामिया गए थे कुलपति का इंटरवियू करने मगर उन्हे मां बहन की गाली सूनकर वापस लौटना पडा... और गांलीयां देने वाले यबनिवर्सिटी के छात्र ही थे.. सिर्फ यही नही ... एन्काउंटर वाले दिन भी पत्रकारों के साथ जो हुआ वो ठीक नही था... उधर गोलियां चल रही थी और इधर पत्रकार गालीया सुन रहे थे... एक पुलिस वाला मारा गया मगर एक भी ऐसा शख्स नही था जिन्होने दिल्ली में होने वोले आतकी हमले के खिलाफ कुछ बोला हो... बल्कि आज क्या हो रहा है पुलिस पर ही लोग आरोप लगा रहे हैं... छी छी ... ये कैसे लोग हैं ये कौन लोग हैं जो इस देश की मिट्टी में जन्म लेने के बाद भी पडोसी मुल्क का ही गुनगान करते हैं...
सरकार भी सोई हुई है... सबकुछ जानते हुए भी चुपचाप तमाशा देख रही है... कोई पॉलिसी ही नही है... अमरीका जिससे हाथ मिलाने को सरकार बेचैन है उससे ही सबक सिखे... वर्लड ट्रेड सेन्टर पर हमले के बाद अमरिका ने रातो रात अफगानिस्तान पर हमला कर दिया मगर हम पता नही क्यों चुप हैं... इस देश में एक आंदोलन की सख्त जरुरत है और इसकी शुरुआत जल्द ही शुरु करनी चाहीए... क्योंकि लडाई अगर अब नही शुरु हुआ तो फीर कभी नही शुरु हो पाएगा... और इसमें हम सबको चाहे वो हिंदु हो , मुस्लमान हो कोई भी हो साथ में हाथ मिलाकर आगे बढे... अपने घर को बचाएं
Saturday, August 30, 2008
मौत या बेमौत
सरकार की व्यवस्था कैसी है आप खुद ही देख सकते हैं और अंदाजा लगा सकते है... क्या सरकारी तंत्र इस बार बिहार में इतना ज्यादा बेखबर हो गया था उसे इस खतरे का अंदेशा तक नही हुआ...
Saturday, August 23, 2008
जीयो और जीने दो
{मुझे नही पता इस लेख को पढने के बाद आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी मगर मेरे उपर इसका इतना गहरा असर पडा है । आज कोई भी मेरा नाम पुछता है तो मुझे अपना नाम बताने तक में संकोच होता है }
अचानक ही बात निकल पडी... दोस्तों ने धर्मनिर्पेक्षता पर बात छेड दी थी। मैं चुपचाप सुनता रहा , उनका कहना था अलगाव की राजनीत से ही लोग प्रभावीत होते आए हैं जिसकी वजह एक वर्ग ऐसा है जो हर चीजों को धर्म के नाम पर ही तैलता हैं मैने बहुत ज्यादा कुछ नही कहा सिर्फ सुनता रहा। मैं खुद भुक्तभोगी रह चुका हुं खैर बात बीच मे ही रुक गई और हम सब अपने अपने दफतर लौट आए। शाम की बुलेटीन के लिए तैयारी करनी थी मगर दिन को हुई बाते मेरे दिमाग में बार बार कौंध रही थी और उन दिनों की बातें याद आ गई जब मेरा तबादला पटना से दिल्ली कर दिया गया था । मकान की समस्या काफी अहम थी इसिलिए दिल्ली पहुंचते ही मैने मकान खोजना शुरु कर दिया... मकान मालीक भी मकान बडे प्यार से दिखाते मगर मेरे बारे में जानकारी मिलने के बाद उनका स्वाद ही बिगड जाता था । मैं पत्रकार आदमी इस बात को शुरु में पकड नही पाया की मामला क्या है । मैने अपने एजेंट से इस बारे में जब पुछताछ की तो पता चला की मेरा मुसलमान परिवार में जन्म लेना इन लोगों को नागवार गुजर गया है , मेरे भारतीय होने से इन्हे कोई फर्क नही पडता । खैर, मेरे एक मित्र विक्रम को जब मेरे इस हालत के बारे में पता चला तो उसने अपना नया एक कमरे का मकान मुझे किराए पर दे डाला । मैंने उसका शुक्रिया अदा किया और सामान लेकर उसके मकान में पहुंच गया । गर्मी के दिन थे और उपरी मंजील का मकान , अब मकान चुंकी नया था इसिलिए बिजली का कनेक्शन भी नही आया था आप ही सेचीए मेरी क्या हालत हुई होगी। खैर मैं उस मकान में रहने लगा मगर सोता ऑफिस में ही था क्योंकि दिल्ली की गर्मी तो आपको पता ही है । बिस्तर पर पानी छीडक कर सोने की कोशीश करता था मगर गर्मी के कारण सुबह तक आंखे खुली ही रहती थी । देर शाम तक की शिफ्ट भी मैं करने लगा । मेरी हालत खराब होती जा रही थी मगर कोई भी मकान देने को तैयार नही हुआ । दिन प्रतिदिन मेरी सोंच मझे धोखा दे रही थी । पहले मैं ये सोचता था कम से कम इस देश में तो लोग एक दुसरे से इतनी घृणा नही करते होंगे पर यहां आकर पता चला की आप चाहे कितने बडे देश प्रेमी क्यों न हों मगर जब बात धर्म की आती है तो कोई किसी का नही ।
मेरे दोस्त जो मुझे मकान दिलाने में मेरी मदद कर रहे थे उन्हे भी शर्म आने लगी थी मगर वो भी बेचारे लाचार थे । बाद में आखीरकार मुझे एक बैंक अधिकारी जो अपने आपको मेरे ही धर्म का होने का दावा करता था उसने नोएडा में अपना मकान दिया।
मेरे साथ ऐसा हुआ क्यों , इसका सबसे बडा कारण है इस देश में चल रही राजनिती। शुरु से ही हम देखते आ रहे 1947 के बाद से ही अलगाव की राजनीत शुरु हो गई थी । हमसब भारतीय तो हैं मगर धर्म और जात के नाम पर बटे हुए हैं और वोट भी हम उसी आधार पर देते आए हैं । अब देखिए मुस्लमानों में भी जाती के नाम पर राजनीत शुरु हो चुकी है । अपना उल्लु सिधा करने के लिए पसमंदा मुस्लिम महाज के नाम पर कुछ मुस्लिम नेता राजनीत कर रहे हैं यानी सिधे तौर पर लडवाने की राजनीत ।
अयोधया के मामले में भी हमने देखा की क्या हुआ । बाबरी मस्जिद में बाबर के मरने के बाद किसी ने शायद ही किसी ने नमाज पढा होगा मगर कुछ नेताओं के चक्कर में कितने मासुम मारे गए । धमाके जब होते हैं तो सिर्फ इंसान मरते हैं, खुद सोंच कर देखिए की कैसे कैसे लोग मारे गए । देश का कोई भी हिस्सा हो, इस बीमारी से अछुता नही है ।
सीमी जैसे संगठन के बारे कौन नही जानता मगर सरकार में दो वरीष्ठ मंत्री ये मानते है की इस संगठन का आतंकवाद से कोई लेना देना ही नही है । अफजल गुरु का हश्र क्या होना चाहिए था ये तो कोई बच्चा भी बता देगा मगर हम उसे भी पाल रहे हैं । आप मरते रहिए मगर सरकार पडोसीयों के दुशमनी के जवाब में सिर्फ कसीदे ही पढेती रहेगी । और इन सब के चक्कर में लोगों के गुस्से का शिकार होना पडता है हम जैसे लोगों को जिसके लिए देश से बडा कुछ भी नही शायद धर्म भी नही।
अचानक ही बात निकल पडी... दोस्तों ने धर्मनिर्पेक्षता पर बात छेड दी थी। मैं चुपचाप सुनता रहा , उनका कहना था अलगाव की राजनीत से ही लोग प्रभावीत होते आए हैं जिसकी वजह एक वर्ग ऐसा है जो हर चीजों को धर्म के नाम पर ही तैलता हैं मैने बहुत ज्यादा कुछ नही कहा सिर्फ सुनता रहा। मैं खुद भुक्तभोगी रह चुका हुं खैर बात बीच मे ही रुक गई और हम सब अपने अपने दफतर लौट आए। शाम की बुलेटीन के लिए तैयारी करनी थी मगर दिन को हुई बाते मेरे दिमाग में बार बार कौंध रही थी और उन दिनों की बातें याद आ गई जब मेरा तबादला पटना से दिल्ली कर दिया गया था । मकान की समस्या काफी अहम थी इसिलिए दिल्ली पहुंचते ही मैने मकान खोजना शुरु कर दिया... मकान मालीक भी मकान बडे प्यार से दिखाते मगर मेरे बारे में जानकारी मिलने के बाद उनका स्वाद ही बिगड जाता था । मैं पत्रकार आदमी इस बात को शुरु में पकड नही पाया की मामला क्या है । मैने अपने एजेंट से इस बारे में जब पुछताछ की तो पता चला की मेरा मुसलमान परिवार में जन्म लेना इन लोगों को नागवार गुजर गया है , मेरे भारतीय होने से इन्हे कोई फर्क नही पडता । खैर, मेरे एक मित्र विक्रम को जब मेरे इस हालत के बारे में पता चला तो उसने अपना नया एक कमरे का मकान मुझे किराए पर दे डाला । मैंने उसका शुक्रिया अदा किया और सामान लेकर उसके मकान में पहुंच गया । गर्मी के दिन थे और उपरी मंजील का मकान , अब मकान चुंकी नया था इसिलिए बिजली का कनेक्शन भी नही आया था आप ही सेचीए मेरी क्या हालत हुई होगी। खैर मैं उस मकान में रहने लगा मगर सोता ऑफिस में ही था क्योंकि दिल्ली की गर्मी तो आपको पता ही है । बिस्तर पर पानी छीडक कर सोने की कोशीश करता था मगर गर्मी के कारण सुबह तक आंखे खुली ही रहती थी । देर शाम तक की शिफ्ट भी मैं करने लगा । मेरी हालत खराब होती जा रही थी मगर कोई भी मकान देने को तैयार नही हुआ । दिन प्रतिदिन मेरी सोंच मझे धोखा दे रही थी । पहले मैं ये सोचता था कम से कम इस देश में तो लोग एक दुसरे से इतनी घृणा नही करते होंगे पर यहां आकर पता चला की आप चाहे कितने बडे देश प्रेमी क्यों न हों मगर जब बात धर्म की आती है तो कोई किसी का नही ।
मेरे दोस्त जो मुझे मकान दिलाने में मेरी मदद कर रहे थे उन्हे भी शर्म आने लगी थी मगर वो भी बेचारे लाचार थे । बाद में आखीरकार मुझे एक बैंक अधिकारी जो अपने आपको मेरे ही धर्म का होने का दावा करता था उसने नोएडा में अपना मकान दिया।
मेरे साथ ऐसा हुआ क्यों , इसका सबसे बडा कारण है इस देश में चल रही राजनिती। शुरु से ही हम देखते आ रहे 1947 के बाद से ही अलगाव की राजनीत शुरु हो गई थी । हमसब भारतीय तो हैं मगर धर्म और जात के नाम पर बटे हुए हैं और वोट भी हम उसी आधार पर देते आए हैं । अब देखिए मुस्लमानों में भी जाती के नाम पर राजनीत शुरु हो चुकी है । अपना उल्लु सिधा करने के लिए पसमंदा मुस्लिम महाज के नाम पर कुछ मुस्लिम नेता राजनीत कर रहे हैं यानी सिधे तौर पर लडवाने की राजनीत ।
अयोधया के मामले में भी हमने देखा की क्या हुआ । बाबरी मस्जिद में बाबर के मरने के बाद किसी ने शायद ही किसी ने नमाज पढा होगा मगर कुछ नेताओं के चक्कर में कितने मासुम मारे गए । धमाके जब होते हैं तो सिर्फ इंसान मरते हैं, खुद सोंच कर देखिए की कैसे कैसे लोग मारे गए । देश का कोई भी हिस्सा हो, इस बीमारी से अछुता नही है ।
सीमी जैसे संगठन के बारे कौन नही जानता मगर सरकार में दो वरीष्ठ मंत्री ये मानते है की इस संगठन का आतंकवाद से कोई लेना देना ही नही है । अफजल गुरु का हश्र क्या होना चाहिए था ये तो कोई बच्चा भी बता देगा मगर हम उसे भी पाल रहे हैं । आप मरते रहिए मगर सरकार पडोसीयों के दुशमनी के जवाब में सिर्फ कसीदे ही पढेती रहेगी । और इन सब के चक्कर में लोगों के गुस्से का शिकार होना पडता है हम जैसे लोगों को जिसके लिए देश से बडा कुछ भी नही शायद धर्म भी नही।
Saturday, August 2, 2008
सूषमा मैडम की राजनीत....
खैर चलिए छोडिए, उमा भारती को... उनकी नाराजगी जायज भी है आखीर सबने उन्हे छोड दिया है ... समझा किजिए भाई लेकिन भाई ये सुषमा स्वराज को क्या हो गया है... जनता हैरान... नेता हैरान और एनडीए परेशान... उन्हे भी मुंह की खानी पडी... मेरे पिता अक्सर कहा करते हैं की देखने में दिमाग से तेज लगना और वाकई में तेज होना दो अलग बाते हैं... अगर वो चुप ही रहती तो लोग उन्हे तेज नेताओं की गिनती में ही रखते मुंह जो खोला सारे पोल खुल गए... ना ना ये मैं नहीं कह रहा हुं ये तो खुद उनकी एनडीए कह रही है भाई... मिडिया को क्या लेना देना हम तो वही दिखाते हैं जो होता है... नारायण नारायण....सूषमा जी एक काम किजिए कुछ दिनों के लिए किसी से टयूशन ले लिजिए शायद सोनीया गांधी ठीक रहेंगी आपको पढाने के लिए... या फिर अमर सिंह भी तो बुरे नहीं हैं... अरे आपतो नाराज हो गई मैडम मैं तो बस एक नागरीक के तौर पर आपको सुझाव दे रहा था आप तो नाराज हो गईं... खैर आपकी मर्जी... अरे हां एक बात तो बताना भुल ही गया शायद आपका नाम कानपुर सीट के लिए तय कर दिया गया है और अब श्री प्रकाश जयसवाल आपके खिलाफ चुनाव लडने में शर्म महसुस कर रहे हैं... खैर आप लोग आपस में समझ लिजिएगा... हम वहीं कहीं कोने में अपने कैमरे लेकर मौजुद रहेंगे...
लालच बुरी बला...
1 अगस्त को इस देश ने उमा भारती की करतुत भी देखी... सबकुछ टीवी पर था.. एक सीडी जिसमें एक व्यक्ति बीजेपी सांसदों के घरों में एक भारी बैग लेकर जा रहा है... बाद में ये दावा किया गया की बीजेपी ने 22 जुलाई को संसद में नोटों को लहराने की झुटी साजीश रची थी... हमे भी लगा की ये क्या हो गया... लेकिन बाद में जब उस सीडी पर गौर किया गया तो सवाल उठाने वाली उमा भारती खुद शक के घेरे में आ गई... वो सीडी दरअसल कांड होने के बाद में फिल्माया गया था क्योंकि संसद में जब नोटों को लहराया गया उसके बाद अशोक अर्गल के घर के बाहर बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने 23 जुलाई को एक होर्डिंग लगवाई थी जिसमें इस कांड को उजागर करने की बधाई दी गई थी... यहीं पर आकर उमा भारती की फिल्म मार खा गई और जनता में पहुंचने से पहले बॉक्स ऑफिस में ही पिट गई... उसके बाद बीजेपी को मौका मिल गया उमा को लथाडने का जमकर लथाडा लेकिन फिर बाद में शायद दया दिखाते हुए छोड दिया... वो भी समझते उनकी छटपटाहट को... कॉंग्रेस की तरह सत्ता की भुख से वो भी वाकीफ हैं... बहरहाल, जनता भी बहुत मजा ले रही है किसी भी एन्टरटेनमेंट प्रोग्राम से कम थोडे ही है आजकल जो भी हो रहा है सत्ता के गलियारे में .... मजा लिजिए ऐश किजिए...
Subscribe to:
Posts (Atom)